आपने सभी ने प्यासे कौए की कहानी सुनी व पढी होगी जिसमें एक कौआ प्यासा होता है और जब उसे एक घडे में पानी मिलता है तो वो उसमें पत्थर डाल डाल कर पानी को ऊपर लाता है और फिर उसे पी कर उड जाता है।
इस कहानी का अर्थ है कि प्रयास करने से हर काम सम्भव है लेकिन कहते हैं कि समय के साथ हर किसी चीज का महत्त्व बदल जाता है। अगर इस कहानी के अर्थ को आज के संदर्भ में लिया जाए तो कुछ यूं भी हो सकता है।
पृथ्वी पर पीने का पानी खत्म हो रहा है और पत्थर डाल डाल कर उसे पीने के स्तर पर लिया जा रहा है। लेकिन जिस तरह से पानी को बर्बाद और दूषित किया जा रहा है, वो दिन भी दूर नहीं है जब घडे में पानी ही नहीं बचेगा।
सोचो अगर पानी खत्म हो गया तो क्या करेंगे? क्या जब तक कोई और विकल्प नहीं मिल जाएगा, तब तक हम सब प्यासे रहेंगे? क्या पानी का कोई और विकल्प हो सकता है? कर दिया न इन सवालों ने आपको परेशान।
अभी भारत में उत्तर पूर्व पश्चिम और दक्षिण में सभी जगह ऐसे बहुत से इलाके हैं जहां पीने का पानी उपलब्ध ही नहीं है और लोगों को रोजाना बहुत दूर दूर से पानी भर के लाना होता है। ऐसे में साफ पानी उपलब्ध करना थोडा नामुमकिन सा लगता है।
डब्लू एच ओ की २०११ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में ३८ करोड लोग जलजनित रोगों से पीिडत है और पानी से होने वाली आम बीमारी दस्त के कारण लगभग १५ लाख बच्चे अपना पांचवा बर्थडे तक नहीं बना पाते। ऐसे में दूषित पानी से होने वाली बीमरियों से बचना बहुत जरूरी है।
पानी के दूषित होने के कारण।
* उद्योगों और घरों से निकलने वाले गंदा पानी।
* ग्लोबल वार्मिंग।
* खेतों में प्रयोग होने वाली रसायनिक खाद और पशुओं की खाद से।
* कार्ड-बोर्ड, अखबार, अल्यूमीनियम, प्लास्टिक बैग्स, शीशा नदियों मे फेंकने से।
* और क्या आपको पता है आप जो कूडा कचरा पानी में फेंक देते हैं इसे नष्ट होने में कितना समय लगता है।
अब आप खुद ही सोचिए अगर पानी में इन सभी अजैविक पदार्थों की मात्रा बढती जाएगी तो वो दिन दूर नहीं जब पीने का पानी हमारे पास नहीं होगा। इसलिए पानी को गंदा होने से बचाना होगा और यमुना की तरह एक और नदी को नाला बनने से बचाना होगा और यह तभी हो सकता है जब हर कोई अपनी जिम्मेदारी समझे और नदियों और तालाबों में यह सब चीजें ना डाले। वैसे यूरोप के देशों में पानी को स्वच्छ बनाए रखने के लिए कई कानून भी बनाए गए है।
धन्यवाद ।